Sunday 12 May 2019

सरकारी स्कूलों में शिक्षा की बर्बरता का जिम्मेदार कौन ? सरकारी तंत्र,शिक्षक या अभिभावक----



सरकारी स्कूलों का शिक्षा स्तर दिन प्रतिदिन क्यूं गिरता जा रहा है हालांकि प्राइवेट स्कूल शिक्षकों के मुकाबले सरकारी स्कूल शिक्षकों को वेतन लगभग आठ गुना ज्यादा मिलता है और मिलना भी चाहिए कोई छक नहीं है क्योंकि सरकारी शिक्षक वो ही बनता है जिसमें काबिलीयत होती है RPSC और REET में काबिलीयत के दम पर चयन होता है फिर भी सरकारी स्कूल से ज्यादा प्राइवेट स्कूलों के बच्चे पढ़ने व लिखने में कई गुना ज्यादा समर्थ है। शायद इसीलिए अभिवावक अपने बच्चों को महंगे निजी स्कूलों में पढ़ाने को मजबूर हैं, क्योंकि उन्हें अपने बच्चों के भविष्य को संवारना है और सरकारी स्कूलों में बच्चों का भविष्य कैसा होगा ये आज की स्थिति स्पष्ट करती हैं।

इसके मूल कई कारण हैं इनमें से कुछ निम्न ---

पहला, सरकार की ग़लत निति - सरकार द्वारा बनाई गई निति के अनुसार सरकारी स्कूलों में आठवीं कक्षा तक के किसी भी विधार्थी को फेल नहीं कर सकते और और नतीजों में नम्बर देने की बजाय A,B,C ग्रेड दी जाती है इसलिए 9वीं क्लास में जाने के बाद खुद बच्चों व माध्यमिक विद्यालय के शिक्षकों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है और ज्यादातर बच्चे 9वीं 10वीं से पहले पढ़ाई छोड़ देते हैं ।

दूसरा, अनुशासन - बच्चों को अनुशासन में कैसे रहना है ये गुरु सिखाता है अगर गुरु ही अनुशासनहीन हो तो बच्चों को कौन सिखाएगा, शिक्षकों द्वारा स्कूल में समय पर ना आना, और समय से पहले स्कूल से चले जाना (स्कूल में चैकिंग आने पर ये अनियमितता कई बार मिली है) स्कूल में प्रार्थना के समय हर रोज बच्चियों से चाय बनवानी और चाय की चुस्कियों के साथ अखबार पढ़ने वाले गप्पे मारने में आधा घंटा बर्बाद करना (शायद इन शिक्षकों को घर से चाय नहीं मिलती) और अपनी क्लास अवधि में क्लास को पुरा समय ना देना, ये आदतें शिक्षकों की अनुशासनहीनता का परिचय देती है।

तीसरा, पढ़ाई  - ये बात रोचक है कि काबिलीयत होने के बावजूद ऐसा क्यूं ? जो शिक्षक पिछले 15-20 सालों से सेवा दे रहें हैं वो पढ़ाई करवाकर उब चुके हैं इसलिए पाठ का सार समझाने की बजाय सिर्फ बच्चों से पाठ पढ़वाकर कल इसी पाठ को पासबुक से देखकर लिख लाना, और जो शिक्षक पिछले चार पांच सालों में चयनित हुए हैं उन्हें बच्चों को पढ़ाने में गर्व महसूस होता है लेकिन उन शिक्षकों का पुराने शिक्षक मज़ाक उड़ाते हुए कहते हैं नया नया है इसलिए, तुम भी धीरे-धीरे पढ़ाना छोड़ दोगे, और छोटी क्लास में इक्का-दुक्का शिक्षक छोड़कर बाकी शिक्षक नहीं जाते क्योंकि छोटे बच्चों पर मेहनत करनी पड़ती है जो ये कर नहीं सकते इसलिए छोटी क्लास कमजोर रह जाती है ना ही वो मजबूत हो पाएगी क्योंकि नींव कमजोर है।

चौथा, बाल मजदूरी - अभिवावक अपने बच्चों को स्कूल में पढ़ने के लिए भेजते हैं ना कि मजदूरी करने, एक तरफ तो सरकार बाल मजदूरी को अपराधिक मामला मानती है और दूसरी तरफ सरकारी स्कूलों में बच्चों से चाय बनवाना, मिड डे मील खाने के बाद छोटे छोटे बच्चों से बर्तन साफ करवाना, क्लासों की साफ़ सफाई जैसे कई काम करवाते हैं जिससे बच्चे के घर पहुंचने पर ऐसा प्रतीत होता है जैसे बच्चा पढ़के नहीं बल्कि बकरियां चारकर आया हो इसलिए मध्यम वर्ग के लोग सरकारी स्कूलों में दाखिला नहीं करवाते ।

पांचवां, स्कूल का अध्यक्ष - असल में स्कूल के अध्यक्ष का अभिभावकों की सहमति से चुनाव होता है लेकिन सरकारी स्कूलों में ऐसा नहीं है प्रधानाचार्य उसे ही स्कूल का अध्यक्ष नियुक्त करता है जो आदमी प्रधानाचार्य की बात को आंखें बंद करके मान ले और हर बात पर प्रधानाचार्य से सहमति रखता हो क्योंकि बहुत सारे फर्जी बिल भी पास करवाने होते हैं और अध्यक्ष का फर्ज होता है स्कूल का निरीक्षण करना क्योंकि सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे निम्न परिवारों के होते हैं और वो मजदूरी करने के लिए चले जाते हैं   परन्तु सरकारी स्कूलों के अध्यक्ष स्कूल साल में दो बार शब्बीस जनवरी व पन्द्रह अगस्त को ही जाते हैं क्योंकि ये अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी नहीं समझते। अगर कोई अध्यक्ष किसी कारण से जिम्मेदारी नहीं संभाल सकता वो इस पद को छोड़ दे, लेकिन ऐसा करेगा तो उसके नाम के आगे अध्यक्ष कैसे लगेगा ?  इसलिए हम सब को अपने बच्चों के भविष्य की चिंता करते हुए इस व्यवस्था को बदलना होगा।

✍पागल सुन्दरपुरीया

ਸਤਿ ਸ੍ਰੀ ਆਕਾਲ ਪੁਰਖ਼ ਨਾਨਕ ਬ੍ਰਹਮ ਆਪਾਰ..

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