प्रेम, प्यार, Love, इश्क यां मोहब्बत शब्द ऐसा शब्द है जो इस दुनियावी दुनियां में बिल्कुल झूठा है और इस शब्द को दुनियां में हर इन्सान बड़े लंबे समय से बोलता आ रहा है। ऊपर से यह और कहता है कि मैं तुम्हें दिल से प्यार करता हूं। लो बताओ भाई दिल का काम है शरीर में रक्तचाप करना, (जो प्यार और दिल शब्द इस्तेमाल करके शायरी, गीत लिखे हैं वह सब काल्पनिक है) लेकिन आपकी ज़िन्दगी काल्पनिक नहीं, वास्तविकता है। बस यही बात को समझना है। 👇
1 - प्रेम शब्द का सही अर्थ?
2 - दुनियावी दुनियां में प्रेम शब्द के कोई मायने नहीं है?
3 - किशोर अवस्था से पहले ही बच्चे प्यार शब्द के प्रभाव में क्यूं आते है?
4 - युवा अवस्था में किसी अजनबी से प्यार कैसे होता है?
5 - प्रेम विवाह करना चाहिए यां नहीं?👇
पहला - प्रेम शब्द का सही अर्थ?
प्रेम शब्द की उत्पत्ति संस्कृत की 'प्री' धातु से हुई है। कहा गया है। 'प्रीणति इति प्रिय: यानी जो प्रिय लगता है। यह सामान्य प्रेम की बात नही, आध्यात्मिक प्रेम की बात है। स्वामी रामतीर्थ जी ने इस संबंध में कहा है। 'प्रेम का अर्थ रोमांस भर नहीं है। प्रेम तो एक तरह की आत्मीयता है। यह अंतरंगता का विषय है। एक विश्वास, एक शक्ति, प्रेम बंधन नहीं है, मुक्ति है। वैसे तो प्रेम शब्दातीत है। यही सच्चा प्यार है। और हां इस प्रेम को पाने के लिए पहले अपने दिमाग से जीतना होता है। जैसे पहले संत महापुरुष करते थे और फिर वो सच्चे प्रेम की धारा में बहते थे।👇
दूसरा - दुनियावी दुनियां में प्रेम शब्द के कोई मायने नहीं है?
इस दुनियां में किसी को किसी से प्यार हो नहीं सकता क्युकिं यहां हर रिश्ता किसी ना किसी बंधन में बंधा हुआ है जैसे कि मां, बेटी, बेटा, पापा, बहन - भाई, दादा - दादी आदि, और प्रेम बंधन नहीं है, मुक्ति है। वैसे भी देखा जाए तो कहने मात्र जितना प्रेम एक मां अपने बच्चे से करती है उतना कोई नहीं कर सकता और बच्चा भी अपनी मां से उतना ही प्यार दिखाता है। तो इन्हे एक दूसरे से गुस्सा, नफ़रत होना क्या सही है? लेकिन ऐसा इसलिए है क्योंकि यह प्रेम नहीं एक रिश्ते का लगाव है। यही सब रिश्तों में होता है चाहे पति - पत्नी ही क्यूं ना हो। इसलिए इस दुनियां में प्यार शब्द के कोई मायने नहीं है। लेकिन किसी भी रिश्ते में लगाव तो होता ही है साथ में एक दूसरे को समझकर जीवन जीने की कला का होना बहुत लाज़मी है। इससे आपको झूठे प्यार शब्द को बोलकर तसल्ली कभी नहीं देनी पड़ेगी।👇
तीसरा - किशोर अवस्था से पहले ही बच्चे प्यार शब्द के प्रभाव में क्यूं आते है?
बचपन से ही बच्चे को बात बात पर लाड दुलार देकर अहसास दिलवाते है कि हम तुम्हें बहुत प्यार करते है। बच्चा कोई जिद्द करके कोई चीज मांगता है तो उसे दिलवा देते हैं (चाहे वह चीज बच्चे के लिए सही ना हो) और कहते देखा बेटा तुम्हारे पापा तुमसे कितना प्यार करते है। तभी से धीरे धीरे हम बच्चे के दिमाग में जिद्द व तथा कथित प्यार को जमा करते जाते हैं। जब छोटा बच्चा शरारत करता है परिवार का एक शख्स किसी बात पे डांट देता है कोई दूसरा शख्स गोद में लेता है और कहता है आ मेरा प्यारा बच्चा डांट पड़ी, उसे समझाता नहीं है कि तेरी ग़लती क्या है पता चलता जो अभी अभी बच्चे को प्यार दिखा रहा था अब वो भी डांट रहा है। ये प्यार नहीं है, फिर भी प्यार शब्द बड़े होने तक बच्चे के दिमाग में फिट करते रहते हैं।👇
चौथा - युवा अवस्था में किसी अजनबी से प्यार कैसे होता है?
सोचने वाली बात है कि इस दुनियां में प्यार शब्द के मायने ही नहीं है तो प्यार होगा कैसे? चलो खैर होता क्या की इस उम्र में बच्चे जवानी में कदम रखते है (तब युवा अवस्था आती है तो शरीर विकास के दौरान बहुत सारे कैमिकल रिएक्शन होते है जो कि पिट्यूटरी ग्रंथि द्वारा स्राव होते है। पिट्यूटरी ग्रंथि दिमाग के आगे वाले हिस्से के हाइपोथैलेमस से जुड़ी होती है। हाइपोथैलेमस हमारे शरीर के अंदर की भावनाओं को व्यक्त करता है जैसे भूख लगना, कोई चीज अच्छी, या बुरी लगना, गुस्सा, नफ़रत, लगाव आदि) कोई भी युवा (लड़की/लड़का) अपने से विपरीत वाले एक दूसरे को आकर्षित होकर देखतें है तो आंखों के जरिए श्रेष्ठ कोलीकुली (दिमाग़ के मध्य भाग के टेक्टम के जरिए सूचना दिमाग़ के अन्य हिस्से व हाइपोथैलेमस के पास आती है तब हाइपोथैलेमस जाग जाता है। (जब कभी भी हाइपोथैलेमस जागता है तो वह पूरे दिमाग पर हावी हो जाता है) बुरा यां ठीक ठीक लगा तो ठीक, अगर हाइपोथैलेमस ने कहा अरे अतिसुन्दर... तो चौंकना संभव है तब शरीर को आपात काल की स्तिथि में संभालने वाला ऑटोनोमन नर्वस सिस्टम का सिंप्थेटिक नर्वस सिस्टम जाग जाता है और (लड़की/लड़का) का दिल जोर जोर से धड़कने लगता है और सांसे तेज़ हो जाती है थोड़ी देर बाद सब सही होता है और इधर (लड़की/लड़का) के दिमाग में हिंदी फिल्मों के गाने डाउनलोड होने लगते है। हालांकि ये सिर्फ़ एक दम से हाइपोथैलेमस का जागना था जैसे आपके साथ कोई अचानक घटना हुई और आपको गुस्सा आया और दिल जोर जोर से धड़कने लगा , सांस भी फूलने लगी। फिर तो गुस्सा भी प्यार हुआ, इसलिए प्यार होता ही नहीं है। लेकिन हां अगर लड़की-लड़का साथ साथ में समय बिताने लगे तो उनका एक दूसरे से लगाव हो जाता है। क्या इस लगाव को प्यार समझा जाए नहीं, क्यूंकि प्यार बंधन नहीं, मुक्ति है। आपने देखा होगा जो एक दूसरे के लवर कहते है बात बात पे झगड़ते है गुस्सा होते हैं फिर प्यार कैसा।
इसलिए जो युवा अवस्था में बच्चे हैं मेरी उनसे विनती है कि इस तथाकथित प्यार जैसे झूठे शब्द के जाल में भूलकर भी मत फसना, यह आपके व आपके परिवार के सपनो का दुश्मन है। अगर प्यार करना है तो उस सच्चे ईश्वर से करो।👇
पांचवा - प्रेम विवाह करना चाहिए यां नहीं?
विवाह एक वह सामाजिक बंधन है जो किसी दो अनजान इंसानों को एक करता है। हमारी पुरातन सभ्यता तो यही कहती है कि सुसंगत विवाह हो यह सही भी है लेकिन फिल्म व फिल्मी गानों की वजह से कच्ची उम्र के युवा तथाकथित प्यार से भर्मित होकर अपने परिवारों को छोड़कर परिवारों से दूर भागने लगे, उस दौरान बहुत हादसे हुए क्यूंकि किसी ने बेटा यां बेटी को पाल पोस्कर बड़ा किया और वो बेटी यां बेटा एक झटके में मां बाप के सपने तोड़ देते है। इन हादसों की वजह से देश में प्रेम विवाह कानून बनाया, कमाल की बात है जो प्रेम होता ही नहीं उसके लिए कानून बना दिया। प्रेम विवाह सफल होने का प्रतिशत बहुत कम होता है अगर प्यार हो तो 100%सफल होना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं हैं क्यूंकि उन्होंने फिल्मी दुनिया देखी होती है जो हकीकत से बहुत परे है। दूसरी बात उनके मां बाप भाई बहिन का साथ नहीं होता जो उनके एक दूसरे के प्रति समझ को बल दे सके। अब बात करते हैं सुसंगत विवाह
जिनका असफल होना बहुत कम है क्यूंकि संबंध बराबर के परिवार से बनते है, उनमें दोनों परिवार विवाहित स्त्री पुरुष के दुख सुख में साथ रहतें है जब पति पत्नी साथ में रहने लगते है उनमें लगाव और एक दूसरे के प्रति समझ बढ़ती जाती है एक दूसरे को समझना अच्छे रिश्ते के लिए काफी होता है। बार बार झूठा शब्द प्यार, I Love you, कहने की कोई जरूरत नहीं है। 👇
सधन्यवाद🙏
लेखक - पागल सुन्दरपुरीया
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