Thursday 5 July 2018

मोदी सरकार का किसानों के साथ एक और मज़ाक, जानिए न्यूनतम समर्थन मूल्य का कड़वा सच :

भारत सरकार के वित्त मंत्री अरुण जेटली ने यह ऐलान किया कि वे उनकी पार्टी द्वारा 2014 के लोकसभा चुनाव के घोषणापत्र में किसानों को उनकी लागत का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) देने के वादे को पूरा कर रहे हैं.

जेटली ने कहा, ‘सरकार ने खरीफ की सभी घोषित फसलों के एमएसपी को उनके उत्पादन लागत से कम से कम डेढ़ गुना रखने का फैसला किया है.’ साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि यह फैसला किसानों की आय को दोगुना करने की दिशा में एक ‘ऐतिहासिक’ क़दम साबित होगा.

लेकिन, थोड़ा ध्यान से देखें, तो साफ़ पता चलता है कि वित्त मंत्री की यह घोषणा गुमराह करने वाली है. योग्य फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की घोषणा कृषि लागत और मूल्य आयोग (सीएसीपी) करता है.

सी ए सी पी उत्पादन लागत की तीन परिभाषाएं स्वीकार करता है- ए2 (वास्तव में ख़र्च की गई लागत) ए2+एफएल (वास्तव में ख़र्च की गई लागत + पारिवारिक श्रम का अनुमानित मूल्य) और सी2 (समग्र लागत, जिसमें स्वामित्व वाली भूमि और पूंजी के अनुमानित किराये और ब्याज को भी शामिल किया जाता है). इससे साफ़ पता चलता है, सी2 बड़ा है

ऊपर दी गई सारणी से यह पता चलता है कि सी2 और ए2+एफएल के बीच काफ़ी बड़ा अंतर है. यानी जब एमएसपी के निर्धारण के लिए लागत+ 50% के वित्त मंत्री के फॉर्मूले का इस्तेमाल किया जाएगा, तो परिणाम इस बात पर निर्भर करेगा कि आख़िर इसके लिए किस लागत को आधार बनाया जा रहा है.

कृषि नीति विशेषज्ञ देविंदर शर्मा के मुताबिक जिस स्वामीनाथ आयोग की रिपोर्ट की बार-बार चर्चा की जाती है, उसमें साफ़ तौर पर यह कहा गया है कि किसानों को मिलने वाला न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) उत्पादन की समग्र लागत से 50% ज़्यादा होना चाहिए.

उन्होंने कहा, ‘लागत+50% का फॉर्मूला स्वामीनाथन आयोग से आया है और इसमें यह साफ़ तौर पर कहा गया है कि उत्पादन लागत का मतलब उत्पादन की समग्र लागत है, जो सी2 है, न कि ए2+एफएल.’

पिछले कई वर्षों से किसानों और किसानों के संगठनों द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य को बढ़ाकर उत्पादन लागत जोड़ 50% के बराबर किए जाने की मांग की जाती रही है. उनके लिए उत्पादन लागत का अर्थ सी2 है, न कि ए2+एफएल.

भारतीय किसान संघ अध्यक्ष हरपाल सिंह का कहना है, ‘हम उत्पादन की कुल लागत, जिसमें ज़मीन की क़ीमत भी शामिल है, के डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य की मांग कर रहे हैं. इस बात को लेकर थोड़ा संदेह है कि वित्त मंत्री ने उत्पादन की कुल लागत की बात की थी या वे किसी और घटाई गई राशि का ज़िक्र कर रहे थे.’

जय किसान आंदोलन के राष्ट्रीय संयोजक अविक साहा ध्यान दिलाते हैं कि 2014 के लोकसभा चुनाव के वक़्त जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एमएसपी को लागत के ऊपर 50 प्रतिशत करने का वादा किया था, उस वक़्त ज़्यादातर फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य पहले से ही ए2+एफएल पर 50% से ज़्यादा था. यानी उनके लिए लागत का मतलब ज़रूर सी2 रहा होगा.

साहा ने कहा, ‘2014 में ज़्यादातर फसलों के लिए एमएसपी, ए2+एफएल के ऊपर 50 प्रतिशत से ज़्यादा था. लेकिन, इसके बावजूद किसान वित्तीय संकट में थे. नरेंद्र मोदी ने ज़रूर इस बात को समझा होगा और यही कारण है कि उन्होंने हर जगह कहा कि वे उत्पादन लागत से 50 प्रतिशत ज़्यादा एमएसपी देंगे. इसलिए उनके जेहन में सी2 रहा होगा, न कि ए2+एफएल.’

अपने भाषण में जेटली ने यह दावा भी किया कि सरकार पहले ही, ‘रबी की अधिकतर फसलों के लिए लागत से कम से कम डेढ़ गुना एमएसपी’ की घोषणा कर चुकी है. उन्होंने भले यह साफ़ तौर पर नहीं कहा हो, मगर वे किस उत्पादन लागत की बात कर रहे थे यह नीचे दी गई सारणी से साफ़ हो जाता है.

जैसा कि सारणी से स्पष्ट है, 2017-18 के रबी के मौसम के लिए, सी2 के हिसाब से आय सभी फसलों के लिए 50% से कम है. जेटली यह दावा नहीं कर सकते थे कि सरकार ने पहले ही सी2 का डेढ़ गुना दे दिया है.

निश्चित तौर पर जेटली ने जब उत्पादन लागत के बारे में बात की, तब उनके दिमाग में ए2+एफएल रहा होगा, क्योंकि ज़्यादातर फसलों के लिए मिलने वाला मूल्य, जैसा कि जेटली ने कहा, यहां ए2+एफएल पर 50 प्रतिशत से ज़्यादा- या लागत का डेढ़ गुना है.

कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी का कहना है कि अगर ए2+एफएल का इस्तेमाल उत्पादन लागत के तौर पर किया जाना है, तो वित्त मंत्री की घोषणा में कुछ भी नया नहीं है. ‘इसको लेकर काफ़ी ग़ैरज़रूरी भ्रम पैदा किया गया है. पिछले 10 वर्षों से एमएसपी ए2+एफएल से 50 प्रतिशत ज़्यादा रहा है. इसमें कुछ भी नया नहीं है. यहां तक कि जब भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में लागत से 50 प्रतिशत ज़्यादा देने का वादा किया था, उस समय भी न्यूनतम समर्थन मूल्य ए2+एफएल से 50 प्रतिशत से ज़्यादा था. अगर उनके दिमाग में ए2+एफएल था, तो उनको घोषणा पत्र में इसे शामिल करने की क्या ज़रूरत थी? इस हिसाब से एमएसपी पहले ही ज़्यादा था.’

गुलाटी ने यह भी कहा, ‘अगर हम ए2+एफएल का इस्तेमाल (उत्पादन लागत के तौर पर) करते हैं, तो गेहूं के लिए एमएसपी पहले ही (लागत से) 100 प्रतिशत से ज़्यादा है. ऐसे में आप क्या करेंगे? क्या आप गेहूं के लिए एमएसपी को घटा देंगे?’

हरपाल सिंह, वित्त मंत्री की घोषणा के आलोचक हैं और वे इसे वादाख़िलाफ़ी क़रार देते हैं. सिंह कहते हैं, ‘भाजपा ख़ुद चुनाव प्रचार के दौरान घूम-घूम कर कुल लागत मूल्य का, न कि आंशिक लागत मूल्य का डेढ़ गुना एमएसपी देने की बात कर रही थी. यह किसानों की पीठ में छूरा घोंपने के समान है.’


अविक साहा, सिंह की बात से सहमत हैं. वे कहते हैं, ‘इतने दिनों से वे सी2 के हिसाब से लागत मूल्य पर 50 प्रतिशत ज़्यादा देने की बात करते रहे, लेकिन अपने कार्यकाल के आख़िरी साल में वे अचानक अपनी बात से मुकर गए हैं और किसानों के साथ धोखा करने की कोशिश कर रहे हैं.’

देविंदर शर्मा का कहना है कि एक बात तो यह है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य में घोषित इज़ाफ़ा काफ़ी नहीं है, साथ ही यह भी याद रखा जाना ज़रूरी है कि बहुत थोड़े किसानों की वास्तविक पहुंच एमएसपी तक है.

वे कहते हैं, ‘पहली बात, घोषित इज़ाफ़ा बहुत कम है, क्योंकि यह ए2+एफएल पर आधारित है. लेकिन हक़ीक़त यह है कि हमारे देश के 93 फीसदी किसानों की पहुंच तो एमएसपी तक भी नहीं है. उन्हें बाज़ार की अस्थिरता का सामना करने के लिए छोड़ दिया गया है. इस बजट में एमएसपी के दायरे को बढ़ाने और इसमें ज़्यादा किसानों को शामिल करने को लेकर कोई प्रावधान नहीं किया गया है. एमएसपी के निर्धारण के अलावा यह एक और समस्या है.’

किसानों का भी यह कहना है कि एमएसपी की घोषणा सिर्फ 25 फसलों के लिए की जाती है. राजस्थान के श्रीगंगानगर के किसान अंग्रेज सिंह बराड़ का कहना है, की की राजस्थान हरियाणा में ग्वार की फसल की अच्छी पैदावार होती है लेकिन उसका अभी तक कोई एमएसपी तय नहीं हुआ ‘अन्य फसलों के लिए किसानों को बाज़ार की अस्थिरता का सामना करना पड़ता है. दूसरी फसलों के बारे में क्या किया गया है? सब्ज़ियों के लिए कोई एमएसपी नहीं है. अगर एक दिन मैं 10 रुपये की दर से बिक्री करता हूं, तो अगले दिन कीमत 5 रुपये भी रह सकती है. किसानों को सही समय पर एमएसपी नहीं मिलता, क्योंकि सरकार सही समय पर ख़रीददारी नहीं करती. और किसानों को मजबूर होकर एमएसपी से कम कीमत पर अपनी उपज को बेचना पड़ता है.

उन्होंने बताया, ‘जौं की सरकारी  खरीद नहीं की गई. मैं एक छोटा किसान हूं और मुझे नकद की ज़रूरत थी. मैं इंतजार नहीं कर सकता था और मुझे व्यापारी को 1,100 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से अपनी उपज बेचने पर मजबूर होना पड़ा. जौं का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1410 रुपये प्रति क्विंटल है.

बराड़ का मानना है कि अगर लागत से 50% ज़्यादा एमसपी को वास्तव में लागू किया जाता है, तो इससे किसानों को कुछ फायदा होगा. अगर इस योजना का लाभ हम तक पहुंचता है क्योंकि आज तक ऐसा कभी हुआ नहीं है यह तो 2019 के चुनाव को देखते हुए किसानों को खुश करने की सरकार द्वारा कोशिश की गई है मगर मुझे सरकार पर भरोसा नहीं,



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