Tuesday 3 July 2018

मोदी सरकार की योजना अधिकारियों की वजह से फेल, जानिए सच क्या है।


भारत एक कृषि प्रधान देश है किसान को किसानी विरासत में मिलती है बाप दादाओ से मिले तजुर्बे के अनुसार ज्यादातर किसान अपने  खेत में फसल का चयन करते हैं कि हां मेरे दादा ने बोला था इस खेत में कपास की पैदावार अच्छी होगी इस खेत में ग्वार की फसल अच्छीं होगी मान लो कि उस किसान के पास 8 बीघा कृषि भूमि है तो वह किसान दुकान पर जाकर बोलता है कि मुझे 4 बीघा बी टी कपास का और 4 बीघा का ग्वार बीज दे दो  तो दुकान वाला उसे 4 kg( 8 पैकेट) बी टी कपास का बीज दे देता है और साथ में सलाह भी देता है कि आपको कपास बोने से पहले बुवाई के वक्त 25 किलो यूरिया 25 किलो डीएपी 15 किलो सुपर फास्फेट यह डालनी जरुरी है पाटा लगा कर दो थैली यानी 1 किलो  पर बीघा के हिसाब से बीजाई करनी है और पहले पानी के वक्त 25 किलो यूरिया 5 किलो जिंक डालनी है उसके बाद पहली निराई गुड़ाई पर 15 किलो डीएपी सीडर से बीज देनी है ऐसा ही ग्वार का बीज देते वक्त किसान को दुकान वाला सारी चीजें बताता है क्योंकि उसे अपना माल बेचना है कमाई करनी है और किसान करता भी ऐसा ही है इसकी वजह से किसान का फसल पर खर्च बहुत बढ़ जाता है  सरकार ने इस बात को मद्देनजर रखते हुए सोयल हेल्थ कार्ड योजना आरंभ करने का विचार बनाया योजना किसानों के लिए फायदेमंद साबित होगी ऐसा सब का मानना था सोयल हेल्थ कार्ड योजना 19 फरवरी 2015 को प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले की सूरतगढ़ तहसील से उदघाट्न करते हुए पूरे देश में लागू की थी हालांकि कुछ राज्यों में यह योजना पहले से चल रही थी प्रधानमंत्री जी ने उस वक्त एक नारा दिया था "स्वस्थ धरा खेत हरा" और 3 साल में 14 करोड़ किसानों को सोयल हेल्थ कार्ड  देने का लक्ष्य रखा गया इस योजना के लिए 568 करोड़ का बजट दिया गया था इसके बाद लेब सेट अप के लिए केंद्र सरकार ने 2016 में 100 करोड़  का बजट अलग से दिया योजना का मतलब साफ था कि किसान को अपने खेत की मिट्टी के बारे में जानकारी होना बहुत जरूरी क्योंकि देश के ज्यादातर किसान अशिक्षित है, वह अपने तजुर्बे के अनुरूप खेत में फसल का चयन करते हैं  कि उस खेत की मिट्टी में लवणीयता क्षारीयता अम्लीयता तत्व मिट्टी की कमजोरी व ताकत के अनुसार फसल का सही चयन किया जाए एवं उस में डालने वाली खाद जैसे कि यूरिया डीएपी सुपर फास्फेट जिंक आदि जरूरत के हिसाब से डाली जाए जिससे की फसल पर आने वाला खर्च बहुत कम हो जाए और पैदावार ज्यादा आए योजना बहुत अच्छी थी सरकार की नियत भी ठीक थी लेकिन फिर भी योजना का लाभ आम किसान को नहीं मिल रहा और जिनको मिल रहा है वह भी सही स्टीक नहीं मिल रहा क्योंकि किसान जब मिट्टी के सैंपल भरता है तो उसे यह नहीं पता होता है कि सैंपल कैसे भरना है कृषि प्रवेशक की यह जिम्मेवारी बनती है कि वह किसान के पास स्वय आकर उस खेत के मिट्टी के सैंपल भरवाएं  लेकिन प्रवेशक अपनी जिम्मेदारी नहीं समझते और ना ही बड़े अधिकारी और उसके बाद सैंपल अगर किसान लैब में भेज भी देता है तो वह सैंपल लैब में जाते-जाते 10 दिन का समय लग जाता है लैब से जो सैंपल की रिपोर्ट आती है उस रिपोर्ट का भी सही से यह नहीं पता होता कि यह उसी किसान की है या किसी और किसान की है क्योंकि लैब में कोई एक्यूरेसी नहीं है एक दूसरे खेतों के सैंपल मिला दिए जाते हैं और ताज़्जुब की बात यह है कि किसान को सोयल हेल्थ कार्ड की रिपोर्ट लेने के लिए दो माह का इंतजार करना पड़ता है जबकि किसान के पास अगली फसल बोने तक लगभग 20 दिन का वक्त होता है फिर ऐसा स्वाइल हेल्थ कार्ड किसान के किस काम का, किसान के लिए सरकार ने बजट इस योजना के अंदर खूब लगाया शुरु-शुरु में इसको गंभीरता से लिया लेकिन फिर इस योजना का भी वही हाल हुआ जो पहले की योजनाओं का होता रहा है आज आज भी अशिक्षित किसानों का बड़ा तबका इस योजना से वंचित है अब तो चुनावी साल है तो इस आधी-अधूरी योजना का भी खूब गुणगान होगा और सोयल हेल्थ कार्ड योजना को आंकड़ों में सफलता प्राप्ती, सरकार द्वारा बताया जाएगा और आश्वासन भी दिया जाएगा कि देश का किसान इस योजना का लाभ उठाकर बहुत खुश हाल है लेकिन सरकार और मंत्री जमीनी हकीकत से कोसों दूर है।


 
   किसान बचाओ
   जवान बचाओ
  भारत का स्वाभिमान बचाओ ।

                               लेखक - कुलजीत सिंह धालीवाल
                               वट्स ऐप - +916350573663

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