Sunday 2 August 2020

लोग तो बोलेंगे


मेरे जीवन के कुछ पहलू मैं इस कहानी में लिखने जा रहा हूं। वैसे समय के साथ मैं अपनी जीवनी की पूरी कहानी "एक पागल भी था" को किताब का रूप दूंगा।

मैंने इस कहानी का शीर्षक "लोग तो बोलेंगे" इसलिए रखा क्यूंकि जब हम अपनी दिनचर्या में कोई भी कार्य करते है उस दौरान समाज में हमारा चरित्र बनता है। अगर हम समाज के अनुरूप अपनी दिनचर्या में व्यवहार करते है चाहे वो हमारी बुद्धि के अनुरूप ना हों फिर भी हमारा चरित्र समाज में अच्छा बनेगा लेकिन अगर आप समाज के अनुरूप से अपनी दिनचर्या में व्यवहार नहीं करते चाहे हमारी बुद्धि उसे सही मानती हो तो हमारा चरित्र समाज में बुरा ही बनेगा, अब इस चरित्र के अनुरूप आपके रिश्तेदार, आसपास के लोग आपके बारे में प्रतिक्रियाएं देते है वैसे इनमें ज्यादातर लोग आलोचक ही होते हैं आलोचक भी वह लोग होते हैं जो खुद कुछ नहीं करते उनका काम इकट्ठे होकर सिर्फ आलोचना करना ही होता है लेकिन मैं आलोचना को बुरी नहीं मानता हमें बेहतर करने में हमारी आलोचना बहुत सहायक होती है।

मेरा जन्म राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले में स्थित पाकिस्तान सीमा पर बसा छोटे से गांव 10 एच सुंदरपुरा के गरीब किसान परिवार में हुआ मेरा नाम कुलजीत सिंह व छोटा नाम बब्बू रखा मेरे पिता जी अनपढ़ थे उन्हें बैलों से खेती करने के अलावा और कुछ नहीं आता था और उनका शहर में आना-जाना भी नहीं था मेरी माता जी बीमार रहती थी उनका सांस लेने वाला वाल्व लीकेज था । मेरे जन्म के बाद मेरे दादा जी ने हमें संयुक्त परिवार से अलग कर दिया हमें एक छोटा सा कच्चा कमरा दिया गया जिसमें पहले भैंसों को रखा जाता था और उसकी छत भी टूटी हुई थी और जमीन में से भी हमें सातवां हिस्सा दिया गया उनका कहना था क्यूंकि मेरे पिताजी के चार बहनें व एक भाई था दो बहनों की शादी सयुंक्त परिवार में की गई थी और दो बहनों की शादी बाद में की गई,, फिर भी चारों भुआ का हिस्सा  दादा जी ने अपने पास रखा और शाहुकार का एक लाख पचास हजार कर्ज दिया गया मेरे दो बहनें थीं एक बड़ी व एक छोटी, पिताजी अपने खेत काम करने के साथ साथ मजदूरी भी करते रहे और घर का गुजरा चलता रहा मेरी माताजी की दवा का जिम्मा मेरे तीनों मामाजी उठाते थे, इसी दौरान मेरी पढ़ाई गांव के सरकारी स्कूल में चलती रही मै पढ़ाई में अच्छा था परन्तु क्रिकेट खेलने का शौकीन था


मैंने 2003 में आठवीं की कक्षा उतीर्ण कर ली उन छुट्टियों में मेरे मामा जी ने मुझे पास के गांव से कम्प्यूटर का बेसिक कोर्स करवाया, मेरे मामा चाहते थे कि मैं बड़ा होकर कुछ बनूं और अपने परिवार को संभाल सकूं। मैं नौवीं की कक्षा में अपने दोस्तों के साथ पढ़ना चाहता था लेकिन मेरे मामा ने सोचा ये बिगड़ ना जाए उन्होंने मेरा दौलतपुरा गांव के सरकारी स्कूल में दाखिला करवा दिया मेरे बड़े मामा खेती, मझले इलेक्ट्रिशयन, छोटे गांव में डाक्टर थे डाक्टर मामा ने मुझे पुराना साइकिल लेकर दिया , मेरा ननिहाल स्कूल के रास्ते में आता था
मैं स्कूल के बाद मामा के पास रुक जाता और उनके कार्य में हाथ बटाया करता धीरे धीरे बिजली का काम भी सीखता रहा लेकिन मैं संस्कृत के पहले टेस्ट में फेल हो गया अब मुझे पढ़ाई से नफ़रत होनी शुरू हो गई स्कूल जाने से कतराने लगा कई बार खेतों में बैठकर खाना खाकर वापिस आ जाना, कई बार खेलने चले जाना लगभग तीन माह तक ऐसे ही चलता रहा, सभी कहने लगे कि बब्बू तां लग गया डीसी, घरवाले मुझे समझाने लगे रिश्तेदार व लोग तंज कसने लगे मुझे बहुत बुरा लगता लेकिन करता क्या?? कुछ दिन खुद को एकांत में रखा और अपने दिल से फैसला कर घरवालों से कुछ समय लिया और बोला "लोग तो बोलेंगे"

 मैंने ट्रैक्टर मिस्त्री बनने का सोचा ओर नजदीक की मंडी में मिस्त्री की दुकान पर काम करने लगा, ट्रैक्टर ठीक करने का तजुर्बा आने लगा एक साल काम करते हुए हो गया था परन्तु मुझे मिस्त्री पैसे नहीं देता था घर की गरीबी मुझे पैसे कमाने की इच्छा जताया करती, हमारी दुकान पे एक दिन महिंद्रा कम्पनी का नया ट्रैक्टर आया वो वारंटी में था इसलिए उसे कम्पनी का टेक्नीशियन ठीक करने आया मैंने उसकी काफी सहायता की उसने बातों बातों में पूछा कि तुम्हें मिस्त्री क्या देता है मैंने कहा कुछ नहीं तो उसने कहा कि तुम मेरे पास आ जाओ मुझे हेल्पर की जरूरत है और तुझे काम के पैसे भी मिलेंगे, उसने अपनी कम्पनी का नंबर मुझे दिया मैंने भी देर ना की एक हफ्ते बाद गांव से बहुत दूर एक अनजान शहर के लिए निकल पड़ा उम्र छोटी थी फरवरी 2005 में बीकानेर जिले की कोलायत शहर के बाईपास पर  अपना भविष्य देखने लगा, बाईपास स्थित महिंद्रा ट्रैक्टर एजेंसी में नौकरी करने लगा मालिक समेत सारा स्टाफ मुझे अपने बच्चो की तरह रखने लगे पहले माह मुझे पंद्रह सौ रुपए वेतन मिला दूसरे माह मेरी महिंद्रा कम्पनी के मैन्युफैक्चर प्लांट में पंद्रह दिन की ट्रेनिंग करवाई गई फिर मुझे मैकेनिक घोषित कर दिया गया और मेरा वेतन तीन हजार रुपए हो गया खाना रहना सब उनका था मैं दो महीने बाद घर आया और मैंने अपनी पहली कमाई अपने माता पिता को दी पूरा परिवार ख़ुश था और उन्हें भी लगने लगा हमारा लड़का हमारी गरीबी दूर करेगा, मैं वापिस ड्यूटी पर चला गया इसके बाद मैंने नौकरी करते ही कोलायत से फिटर ट्रेड में आई टी आई की मेरा वेतन अनुभव व योग्यता के आधार पर मेरा वेतन बढ़कर चार हजार हो गया मेरा लाइफ स्टाइल बदल गया,घर खर्च भी उठाने लगा फिर मैंने सोचा क्यूं ना घर के नजदीक नौकरी की जाए मैंने जॉन डियर एजेंसी श्रीगंगानगर में एप्लाई किया मुझे फोरमैन की पोस्ट मिली वेतन भी अच्छा मिला अपनी बाइक भी खरीद ली रोज घर से ही आना जाना करता रहा। जॉन डियर में ऑनरोल डेमोस्टेटर की पोस्ट मिली एरिया पूरा राजस्थान बारह हजार वेतन के साथ टी ए डी ए नौकरी चलती रही । उस वक्त मेरे बचपन की दोस्त (अब वह मेरी धर्मपत्नी है)  बी - एड करने पटियाला पंजाब आयी,हमारा फोन पर राबता बढ़ता गया जिसने प्यार का रूप ले लिया मैं अक्सर हर शनिवार शाम को जयपुर से अंबाला के लिए ट्रेन पकड़कर पटियाला जाता था और रविवार रात को वापिसी जयपुर के लिए होती मेरा मेरे काम के प्रति लापरवाह रहना मेरे सीनियर को पसंद नहीं आया उन्होंने मेरा ट्रांसफर पुणे मैन्युफैक्चर प्लांट में कर दिया एक माह तो मुश्किल से रहा लेकिन आखिर रिजाइन देना पड़ा और लौटकर घर आ गया कुछ दिन बाद जब लोगों को पता चला कि ये नौकरी छोड़कर आ गया है तो लोगों ने फिर तंज किसने शुरु कर दिए की लोगों को नौकरी मिलती नहीं यह छोड़कर आ गया, रोटी जोगा हो गया सी हुन की करू, आलोचना होती होती थी बुरा लगता था फिर मैंने अपने आप को एकांत किया इस बार भी दिल की सुनी और कहा "लोग तो बोलेंगे"

2010 में जॉन डियर श्री गंगानगर में वापिस नीचे की पोस्ट मैकेनिक लाइन में आया परन्तु एजेंसी के मालिक ने कहा तुम सेल्समैन बनो तुम्हारा अनुभव अच्छा है ओर बात करने का तरीका भी, मैंने पहले माह में दो ट्रैक्टर बेचे कमाई सिर्फ आठ हजार अगले माह अप्रैल में मुझे सोनालिका की नई एजेंसी खुली थी उन्होंने बुलाया मुझे अपनी एजेंसी में काम का ऑफर दिया वेतन भी अच्छा,
इसी माह मेरे दादा ने हमारी सयुक्त जमीन के तीन हिस्से किए एक हमारा , दूसरा चाचा का, तीसरा दादा जी ने खुद का रखा मेरे पिता जी ने हमारा हिस्सा मेरे नाम करवा दिया तहसील में ही मेरे दादा ने मेरे पिताजी को कहा जमीन देती मुंडे नू हुन वेखुंगा कीवें रोटी खाओंगे,, ये बात रिश्तेदार व आसपास के लोग भी करने लगे,, मैंने अपने घरवालों से कहा यह बात कभी सच साबित नहीं होने दूंगा मैंने कहा "लोग तो बोलेंगे"
(यह बात मैंने पांच जून 2020 तक तो साबित नहीं होने दी)

13-09-2013 को लंबी जददोजहद के बाद मेरे ससुराल वाले हमारी शादी कर दी (मेरे बचपन की दोस्त मेरा प्यार) मुझे मिल गया लेकिन रिश्तेदारों व समाज में मैं चर्चा का विषय बन गया क्यूंकि मैंने समाज के हिसाब से दूसरी जाति कि लड़की से शादी की थी लेकिन मैं जात पात नहीं मानता था मेरे सिद्धांत में जात पात नहीं है इसलिए मैंने समाज के विरूद्ध जाकर शादी की। दूर के रिश्तेदार व समाज के लोग कहने लगे इनकी शादी लंबा अर्सा नहीं चलेगी लव मैरिज कामयाब नहीं होती मतलब तरह तरह की बातें करने लगे, लेकिन इस बार मेरे नजदीकी रिश्तेदार में से कुछ रिश्तेदार मेरे साथ खड़े रहे। जब भी मैं घर से बाहर निकलता लोग मुझे देखकर हंसते मेरा मजाक भी उड़ाते मेरी खूब आलोचना हुई मैंने ठान लिया कि मैं अपनी लव मैरिज की समाज में मिसाल कायम करूंगा, और मैंने करके दिखाई..

 पूरी कहानी "एक पागल भी था" किताब में पढ़ना

✍️पागल

5 मई को पुलिस के संबंध में

कल सुबह से पता चलेगा कि कौन किसके साथ है? इसे तीन हिस्सों में बांट कर देखूंगा.. राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक..: इसके अलावा कूटनीतिक... मैं सभी ...