Monday, 23 July 2018

भारतवासियों मुझे बचा लो "मैं भारत की राजनीति हूं"आखिर क्यों रो रही है भारत की राजनीति:-


हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई सबको मित्र बनाना है?
सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तान ये गुन गुनाना है?
"मैं भारत की राजनीति हूं" बस आपने मुझे बचाना है।

मैं स्वतंत्र भारत की राजनीति हूं, आज जो मेरे हालात है वह सब आप देख रहे हो लेकिन मैं पहले ऐसी नहीं थी मैं बहुत पवित्र थी बहुत सच्ची और बहुत अच्छी थी मेरी सच्चाई और अच्छाई को श्री कृष्ण, चाणक्य, चंद्रगुप्त, व राजा रंजीत सिंह खालसा जैसे कई राजाओं व राजनितिज्ञो ने भी स्वीकारा और अपनी मंजिलों को प्राप्त कर अपने देश को स्वर्ग बनाया, लेकिन मैं अब वैसी नहीं रही, क्योंकि मेरा जो पवित्रता का स्वरुप था उसे कुछ राजनैतिक पार्टियों एवं कुछ तथाकथित नेताओं की वजह से बदल गया है। इसलिए जब कभी मेरा इस्तेमाल किसी मुद्दे पर होता है तो लोग कहते हैं कि अब इस मुद्दे का कुछ नहीं होगा क्योंकि राजनीति इस मुद्दे में आ गई है यह धारणा आपकी बिल्कुल गलत है। लेकिन हां मुझे इस्तेमाल करने वाले नेता का सच्चा और ज्ञानी होना बहुत जरूरी है।

भारत को तरक्की की और लेकर जाना है?
विश्व के नक्शे पर भारत को "एक" नंबर पर लाना है?
"मैं भारत की राजनीति हूं" बस आपने मुझे बचाना है।

मैं चाहती हूं कि मेरा इस्तेमाल हर मुद्दे पर होना चाहिए। क्योंकि मेरे बिना कोई मुद्दा आज तक हल नहीं हुआ, उदाहरण के लिए आप किसानों के मुद्दे देख लो जब तक मेरा इस्तेमाल नहीं किया गया तो वे मुद्दे सिर्फ मुद्दे ही रहे लेकिन पिछले 3 सालों से किसान मेरा इस्तेमाल कर रहे हैं, और एक नये जज्बे के साथ जीत की और बढ़ रहे हैं। सरकार पर दबाव बनाने में भी कामयाब हुए हैं। जो सत्ता दल के नेता है उनका कहना है कि किसान नेता किसानों पर राजनीति करते हैं। मैं बता दूं हर किसी को मेरा इस्तेमाल करने का पूरा हक है। सिर्फ इतना ध्यान रखो कि मेरे स्वाभिमान को कोई ठेस ना पहुंचे।

भ्रष्टाचार को जड़ से मिटाना है?
बेरोजगारी को दूर भगाना है?
"मैं भारत की राजनीति हूं" बस आपने मुझे बचाना है।

मैं भारतवासीयो से अपील करना चाहती हूं, कि आप ऐसे नेता को ना चुने जो मेरे आंगन में बैठकर अपने देश को नर्क की ओर ले जा रहे है, मैं आज इतनी लाचार हो चुकी हूं, कि अपना दर्द बताने के सिवाय और कुछ भी नहीं कर सकती मेरी इस लाचारी के पिछे देश का हर नागरिक जिम्मेदार है। कोई भी नागरिक मतदान करने से पहले यह कभी सोचता है? कि जिसे मैं वोट देने जा रहा हूं वह मेरे लिए मेरे समाज व मेरे देश के लिए कितना काबिल है? मुझे हैरानी होती है जो नेता पिछले कई समय से लोगों द्वारा चुनकर आ रहे हैं, उन्हें ना तो मेरी कोई समझ है, और ना ही उनमें यह सोचने की क्षमता है कि क्या समाज और देश के हित में सही है क्या गलत । फिर आप मुझ पर लांछन लगाते हो कि हमारी राजनीति ही ऐसी है, इसमें मेरा कोई कसूर नहीं है यह कसूर आपका है क्योंकि जब आप मतदान करते हो तो मूल्यांकन नहीं करते सिर्फ यह सोचकर वोट दे देते हैं कि यह नेता जीतेगा लेकिन असल में जीतना उसे ही है जिसे आप वोट देते हैं अक्सर ऐसा भी होता है, कि किसी नेता ने या किसी रसुखदार ने आपकी कोई मदद की थी तो वोट उसी को देंगे, बस यही बात है छोटे से एहसान के लिए अपना कीमती वोट बेच देते हो फिर जब सरकार आपके लिए अच्छी योजना नहीं लेकर आती या योजना का पैसा पूरा नहीं आता, अधिकारी आपकी बात नहीं सुनते या रिश्वत मांगते हैं, अस्पतालो में इलाज नहीं होता, बच्चों को स्कूलों में सुविधाएं नहीं मिलती, पुलिस वाले बगैर सिफारिश या रिश्वत के आप की बात नहीं सुनते फिर आप मुझे कोसते हैं और कहते हैं कि नेताओं का कोई दोष नहीं सिस्टम का कोई दोष नहीं हमारी राजनीति ही ऐसी है।‌

नींद से खुद जागना और लोगों को जगाना है?
आज तक जो खोया था उसे फिर से पाना है?
"कुलजीत" मरकर स्वर्ग नहीं मिलता, धरती को स्वर्ग बनाना है?
"मैं भारत की राजनीति हूं"बस आपने मुझे बचाना है।

मुझे इस बात की खुशी है कि मैं स्वतंत्र भारत की राजनीति हूं पर एक बात का दुख भी है कि मेरे स्वतंत्र भारत के लोकतंत्र का हर नागरिक आज भी गुलाम है। और गुलामी की जंजीरों में बधें होने के कारण अपना कीमती मतदान उस नेता को दे देता है जिसकी वो गुलामी करता है। इन्हें देश व समाज की अच्छे बुरे से कोई मतलब नहीं है जरा अपने आप से पूछो तो सही कि मैं किसका गुलाम हूं। तो आपको भी ताज्जुब होगा। मैं किसी को ठेस पहुंचाना नहीं चाहती, मैं तो आपके जमीर को जगाना चाहती हूं, कि इस बार आप गुलामी की जंजीरों को तोड़कर मतदान करो।

ना कि अपने धर्म के नेता को वोट दो, वोट उसे दो जो सच्चा और ईमानदार हो ।
ना ही अपनी जाति के नेता को वोट दो, वोट उसे दो जो जात पात को ना मानता हो ।
ना ही वोट उसे दो जो नफरत फैलाता हो, वोट उसे दो जो प्यार बढ़ाता हो ।
ना ही वोट उसे दो जो सपने दिखाता हो, वोट उसे दो जो स्टांप लिख के लाता हो ।
ना ही वोट उसे दो जो पैसे और एहसान जताता हो, अबकी बार वोट उसको दो जिसे आपका दिल चाहता हो ।

जिस दिन आपने ऐसा मतदान किया, मुझे विश्वास है कि उस दिन मैं और आप गर्व से कहेंगे...................सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान हमारा हमारा ...........................

जय हिंद,
जय भारत,
                          लेखक:-  कुलजीत सिंह धालीवाल
                          वट्सऐप:- +916350573663

Saturday, 7 July 2018

किसान की घड़ी और वो बच्चा :


 एक बार किसान की घड़ी उसके खेत में काम करते करते कहीं खो गयी। मूल्य में तो ये घडी मामूली ही थी लेकिन इस घड़ी के साथ किसान की कुछ भावनात्मक यादें जुडी थी।
किसान ने बहुत देर तक घडी को इधर-उधर खोजा लेकिन उसे घडी कहीं नही मिली। वह थक कर हार मान गया और घडी खोजने के लिए पास में खेल रहे बच्चों की मदद लेने का निर्णय लिया। उसने बच्चों से वादा किया की जो भी उसकी घडी को खोज लेगा उसे वो इनाम देगा। 
ये सुनकर बच्चे जल्दी से खेत में घुस गये और सुखी घास-फूस में घडी को ढूढने लगे लेकिन किसी को भी घडी नही मिली। किसान को लग रहा था की उसको अब उसकी घडी कभी नही मिलेगी तभी एक छोटा लड़का किसान के पास आया और उसे घडी ढूढने का एक और मौका देने को कहा। किसान ने उस बच्चे की तरफ देखा बच्चा बहुत इमानदार दिख रहा था तो किसान  बोला "हाँ क्यों नही"
किसान ने अकेले उस बच्चे को उस खेत में भेजा, कुछ देर बाद वो बच्चा हाथ में घड़ी लेकर किसान के पास आ गया। किसान खुश था लेकिन साथ ही वो बहुत अचंभित भी था की कैसे उस बच्चे ने इतनी आसानी से घड़ी को खोज लिया जबकि और सभी बच्चे घड़ी ढूढने में असफल हो गये। 
जिज्ञासु होकर उसने बच्चे से पूछा की उसने ये कैसे किया? बच्चे ने जवाब दिया "मैंने कुछ ख़ास नही किया मै बस शांति से जमीन पर बैठ गया और सुनने लगा, शांत माहौल में मैंने घडी की टिक-टिक को सुना और उसी दिशा में घडी को खोजना शुरू किया और घडी आसानी से मिल गयी"
शिक्षा - 
एक शांत दिमाग एक अशांत दिमाग से कई गुना बेहतर काम करता है। हर दिन अपने मन को शांति के कुछ मिनट जरूर दें और देखिये किस तरह से आपका शांत मन आपको सफलता की तरफ ले जाएगा। 

Thursday, 5 July 2018

मोदी सरकार का किसानों के साथ एक और मज़ाक, जानिए न्यूनतम समर्थन मूल्य का कड़वा सच :

भारत सरकार के वित्त मंत्री अरुण जेटली ने यह ऐलान किया कि वे उनकी पार्टी द्वारा 2014 के लोकसभा चुनाव के घोषणापत्र में किसानों को उनकी लागत का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) देने के वादे को पूरा कर रहे हैं.

जेटली ने कहा, ‘सरकार ने खरीफ की सभी घोषित फसलों के एमएसपी को उनके उत्पादन लागत से कम से कम डेढ़ गुना रखने का फैसला किया है.’ साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि यह फैसला किसानों की आय को दोगुना करने की दिशा में एक ‘ऐतिहासिक’ क़दम साबित होगा.

लेकिन, थोड़ा ध्यान से देखें, तो साफ़ पता चलता है कि वित्त मंत्री की यह घोषणा गुमराह करने वाली है. योग्य फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की घोषणा कृषि लागत और मूल्य आयोग (सीएसीपी) करता है.

सी ए सी पी उत्पादन लागत की तीन परिभाषाएं स्वीकार करता है- ए2 (वास्तव में ख़र्च की गई लागत) ए2+एफएल (वास्तव में ख़र्च की गई लागत + पारिवारिक श्रम का अनुमानित मूल्य) और सी2 (समग्र लागत, जिसमें स्वामित्व वाली भूमि और पूंजी के अनुमानित किराये और ब्याज को भी शामिल किया जाता है). इससे साफ़ पता चलता है, सी2 बड़ा है

ऊपर दी गई सारणी से यह पता चलता है कि सी2 और ए2+एफएल के बीच काफ़ी बड़ा अंतर है. यानी जब एमएसपी के निर्धारण के लिए लागत+ 50% के वित्त मंत्री के फॉर्मूले का इस्तेमाल किया जाएगा, तो परिणाम इस बात पर निर्भर करेगा कि आख़िर इसके लिए किस लागत को आधार बनाया जा रहा है.

कृषि नीति विशेषज्ञ देविंदर शर्मा के मुताबिक जिस स्वामीनाथ आयोग की रिपोर्ट की बार-बार चर्चा की जाती है, उसमें साफ़ तौर पर यह कहा गया है कि किसानों को मिलने वाला न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) उत्पादन की समग्र लागत से 50% ज़्यादा होना चाहिए.

उन्होंने कहा, ‘लागत+50% का फॉर्मूला स्वामीनाथन आयोग से आया है और इसमें यह साफ़ तौर पर कहा गया है कि उत्पादन लागत का मतलब उत्पादन की समग्र लागत है, जो सी2 है, न कि ए2+एफएल.’

पिछले कई वर्षों से किसानों और किसानों के संगठनों द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य को बढ़ाकर उत्पादन लागत जोड़ 50% के बराबर किए जाने की मांग की जाती रही है. उनके लिए उत्पादन लागत का अर्थ सी2 है, न कि ए2+एफएल.

भारतीय किसान संघ अध्यक्ष हरपाल सिंह का कहना है, ‘हम उत्पादन की कुल लागत, जिसमें ज़मीन की क़ीमत भी शामिल है, के डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य की मांग कर रहे हैं. इस बात को लेकर थोड़ा संदेह है कि वित्त मंत्री ने उत्पादन की कुल लागत की बात की थी या वे किसी और घटाई गई राशि का ज़िक्र कर रहे थे.’

जय किसान आंदोलन के राष्ट्रीय संयोजक अविक साहा ध्यान दिलाते हैं कि 2014 के लोकसभा चुनाव के वक़्त जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एमएसपी को लागत के ऊपर 50 प्रतिशत करने का वादा किया था, उस वक़्त ज़्यादातर फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य पहले से ही ए2+एफएल पर 50% से ज़्यादा था. यानी उनके लिए लागत का मतलब ज़रूर सी2 रहा होगा.

साहा ने कहा, ‘2014 में ज़्यादातर फसलों के लिए एमएसपी, ए2+एफएल के ऊपर 50 प्रतिशत से ज़्यादा था. लेकिन, इसके बावजूद किसान वित्तीय संकट में थे. नरेंद्र मोदी ने ज़रूर इस बात को समझा होगा और यही कारण है कि उन्होंने हर जगह कहा कि वे उत्पादन लागत से 50 प्रतिशत ज़्यादा एमएसपी देंगे. इसलिए उनके जेहन में सी2 रहा होगा, न कि ए2+एफएल.’

अपने भाषण में जेटली ने यह दावा भी किया कि सरकार पहले ही, ‘रबी की अधिकतर फसलों के लिए लागत से कम से कम डेढ़ गुना एमएसपी’ की घोषणा कर चुकी है. उन्होंने भले यह साफ़ तौर पर नहीं कहा हो, मगर वे किस उत्पादन लागत की बात कर रहे थे यह नीचे दी गई सारणी से साफ़ हो जाता है.

जैसा कि सारणी से स्पष्ट है, 2017-18 के रबी के मौसम के लिए, सी2 के हिसाब से आय सभी फसलों के लिए 50% से कम है. जेटली यह दावा नहीं कर सकते थे कि सरकार ने पहले ही सी2 का डेढ़ गुना दे दिया है.

निश्चित तौर पर जेटली ने जब उत्पादन लागत के बारे में बात की, तब उनके दिमाग में ए2+एफएल रहा होगा, क्योंकि ज़्यादातर फसलों के लिए मिलने वाला मूल्य, जैसा कि जेटली ने कहा, यहां ए2+एफएल पर 50 प्रतिशत से ज़्यादा- या लागत का डेढ़ गुना है.

कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी का कहना है कि अगर ए2+एफएल का इस्तेमाल उत्पादन लागत के तौर पर किया जाना है, तो वित्त मंत्री की घोषणा में कुछ भी नया नहीं है. ‘इसको लेकर काफ़ी ग़ैरज़रूरी भ्रम पैदा किया गया है. पिछले 10 वर्षों से एमएसपी ए2+एफएल से 50 प्रतिशत ज़्यादा रहा है. इसमें कुछ भी नया नहीं है. यहां तक कि जब भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में लागत से 50 प्रतिशत ज़्यादा देने का वादा किया था, उस समय भी न्यूनतम समर्थन मूल्य ए2+एफएल से 50 प्रतिशत से ज़्यादा था. अगर उनके दिमाग में ए2+एफएल था, तो उनको घोषणा पत्र में इसे शामिल करने की क्या ज़रूरत थी? इस हिसाब से एमएसपी पहले ही ज़्यादा था.’

गुलाटी ने यह भी कहा, ‘अगर हम ए2+एफएल का इस्तेमाल (उत्पादन लागत के तौर पर) करते हैं, तो गेहूं के लिए एमएसपी पहले ही (लागत से) 100 प्रतिशत से ज़्यादा है. ऐसे में आप क्या करेंगे? क्या आप गेहूं के लिए एमएसपी को घटा देंगे?’

हरपाल सिंह, वित्त मंत्री की घोषणा के आलोचक हैं और वे इसे वादाख़िलाफ़ी क़रार देते हैं. सिंह कहते हैं, ‘भाजपा ख़ुद चुनाव प्रचार के दौरान घूम-घूम कर कुल लागत मूल्य का, न कि आंशिक लागत मूल्य का डेढ़ गुना एमएसपी देने की बात कर रही थी. यह किसानों की पीठ में छूरा घोंपने के समान है.’


अविक साहा, सिंह की बात से सहमत हैं. वे कहते हैं, ‘इतने दिनों से वे सी2 के हिसाब से लागत मूल्य पर 50 प्रतिशत ज़्यादा देने की बात करते रहे, लेकिन अपने कार्यकाल के आख़िरी साल में वे अचानक अपनी बात से मुकर गए हैं और किसानों के साथ धोखा करने की कोशिश कर रहे हैं.’

देविंदर शर्मा का कहना है कि एक बात तो यह है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य में घोषित इज़ाफ़ा काफ़ी नहीं है, साथ ही यह भी याद रखा जाना ज़रूरी है कि बहुत थोड़े किसानों की वास्तविक पहुंच एमएसपी तक है.

वे कहते हैं, ‘पहली बात, घोषित इज़ाफ़ा बहुत कम है, क्योंकि यह ए2+एफएल पर आधारित है. लेकिन हक़ीक़त यह है कि हमारे देश के 93 फीसदी किसानों की पहुंच तो एमएसपी तक भी नहीं है. उन्हें बाज़ार की अस्थिरता का सामना करने के लिए छोड़ दिया गया है. इस बजट में एमएसपी के दायरे को बढ़ाने और इसमें ज़्यादा किसानों को शामिल करने को लेकर कोई प्रावधान नहीं किया गया है. एमएसपी के निर्धारण के अलावा यह एक और समस्या है.’

किसानों का भी यह कहना है कि एमएसपी की घोषणा सिर्फ 25 फसलों के लिए की जाती है. राजस्थान के श्रीगंगानगर के किसान अंग्रेज सिंह बराड़ का कहना है, की की राजस्थान हरियाणा में ग्वार की फसल की अच्छी पैदावार होती है लेकिन उसका अभी तक कोई एमएसपी तय नहीं हुआ ‘अन्य फसलों के लिए किसानों को बाज़ार की अस्थिरता का सामना करना पड़ता है. दूसरी फसलों के बारे में क्या किया गया है? सब्ज़ियों के लिए कोई एमएसपी नहीं है. अगर एक दिन मैं 10 रुपये की दर से बिक्री करता हूं, तो अगले दिन कीमत 5 रुपये भी रह सकती है. किसानों को सही समय पर एमएसपी नहीं मिलता, क्योंकि सरकार सही समय पर ख़रीददारी नहीं करती. और किसानों को मजबूर होकर एमएसपी से कम कीमत पर अपनी उपज को बेचना पड़ता है.

उन्होंने बताया, ‘जौं की सरकारी  खरीद नहीं की गई. मैं एक छोटा किसान हूं और मुझे नकद की ज़रूरत थी. मैं इंतजार नहीं कर सकता था और मुझे व्यापारी को 1,100 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से अपनी उपज बेचने पर मजबूर होना पड़ा. जौं का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1410 रुपये प्रति क्विंटल है.

बराड़ का मानना है कि अगर लागत से 50% ज़्यादा एमसपी को वास्तव में लागू किया जाता है, तो इससे किसानों को कुछ फायदा होगा. अगर इस योजना का लाभ हम तक पहुंचता है क्योंकि आज तक ऐसा कभी हुआ नहीं है यह तो 2019 के चुनाव को देखते हुए किसानों को खुश करने की सरकार द्वारा कोशिश की गई है मगर मुझे सरकार पर भरोसा नहीं,



Tuesday, 3 July 2018

मोदी सरकार की योजना अधिकारियों की वजह से फेल, जानिए सच क्या है।


भारत एक कृषि प्रधान देश है किसान को किसानी विरासत में मिलती है बाप दादाओ से मिले तजुर्बे के अनुसार ज्यादातर किसान अपने  खेत में फसल का चयन करते हैं कि हां मेरे दादा ने बोला था इस खेत में कपास की पैदावार अच्छी होगी इस खेत में ग्वार की फसल अच्छीं होगी मान लो कि उस किसान के पास 8 बीघा कृषि भूमि है तो वह किसान दुकान पर जाकर बोलता है कि मुझे 4 बीघा बी टी कपास का और 4 बीघा का ग्वार बीज दे दो  तो दुकान वाला उसे 4 kg( 8 पैकेट) बी टी कपास का बीज दे देता है और साथ में सलाह भी देता है कि आपको कपास बोने से पहले बुवाई के वक्त 25 किलो यूरिया 25 किलो डीएपी 15 किलो सुपर फास्फेट यह डालनी जरुरी है पाटा लगा कर दो थैली यानी 1 किलो  पर बीघा के हिसाब से बीजाई करनी है और पहले पानी के वक्त 25 किलो यूरिया 5 किलो जिंक डालनी है उसके बाद पहली निराई गुड़ाई पर 15 किलो डीएपी सीडर से बीज देनी है ऐसा ही ग्वार का बीज देते वक्त किसान को दुकान वाला सारी चीजें बताता है क्योंकि उसे अपना माल बेचना है कमाई करनी है और किसान करता भी ऐसा ही है इसकी वजह से किसान का फसल पर खर्च बहुत बढ़ जाता है  सरकार ने इस बात को मद्देनजर रखते हुए सोयल हेल्थ कार्ड योजना आरंभ करने का विचार बनाया योजना किसानों के लिए फायदेमंद साबित होगी ऐसा सब का मानना था सोयल हेल्थ कार्ड योजना 19 फरवरी 2015 को प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले की सूरतगढ़ तहसील से उदघाट्न करते हुए पूरे देश में लागू की थी हालांकि कुछ राज्यों में यह योजना पहले से चल रही थी प्रधानमंत्री जी ने उस वक्त एक नारा दिया था "स्वस्थ धरा खेत हरा" और 3 साल में 14 करोड़ किसानों को सोयल हेल्थ कार्ड  देने का लक्ष्य रखा गया इस योजना के लिए 568 करोड़ का बजट दिया गया था इसके बाद लेब सेट अप के लिए केंद्र सरकार ने 2016 में 100 करोड़  का बजट अलग से दिया योजना का मतलब साफ था कि किसान को अपने खेत की मिट्टी के बारे में जानकारी होना बहुत जरूरी क्योंकि देश के ज्यादातर किसान अशिक्षित है, वह अपने तजुर्बे के अनुरूप खेत में फसल का चयन करते हैं  कि उस खेत की मिट्टी में लवणीयता क्षारीयता अम्लीयता तत्व मिट्टी की कमजोरी व ताकत के अनुसार फसल का सही चयन किया जाए एवं उस में डालने वाली खाद जैसे कि यूरिया डीएपी सुपर फास्फेट जिंक आदि जरूरत के हिसाब से डाली जाए जिससे की फसल पर आने वाला खर्च बहुत कम हो जाए और पैदावार ज्यादा आए योजना बहुत अच्छी थी सरकार की नियत भी ठीक थी लेकिन फिर भी योजना का लाभ आम किसान को नहीं मिल रहा और जिनको मिल रहा है वह भी सही स्टीक नहीं मिल रहा क्योंकि किसान जब मिट्टी के सैंपल भरता है तो उसे यह नहीं पता होता है कि सैंपल कैसे भरना है कृषि प्रवेशक की यह जिम्मेवारी बनती है कि वह किसान के पास स्वय आकर उस खेत के मिट्टी के सैंपल भरवाएं  लेकिन प्रवेशक अपनी जिम्मेदारी नहीं समझते और ना ही बड़े अधिकारी और उसके बाद सैंपल अगर किसान लैब में भेज भी देता है तो वह सैंपल लैब में जाते-जाते 10 दिन का समय लग जाता है लैब से जो सैंपल की रिपोर्ट आती है उस रिपोर्ट का भी सही से यह नहीं पता होता कि यह उसी किसान की है या किसी और किसान की है क्योंकि लैब में कोई एक्यूरेसी नहीं है एक दूसरे खेतों के सैंपल मिला दिए जाते हैं और ताज़्जुब की बात यह है कि किसान को सोयल हेल्थ कार्ड की रिपोर्ट लेने के लिए दो माह का इंतजार करना पड़ता है जबकि किसान के पास अगली फसल बोने तक लगभग 20 दिन का वक्त होता है फिर ऐसा स्वाइल हेल्थ कार्ड किसान के किस काम का, किसान के लिए सरकार ने बजट इस योजना के अंदर खूब लगाया शुरु-शुरु में इसको गंभीरता से लिया लेकिन फिर इस योजना का भी वही हाल हुआ जो पहले की योजनाओं का होता रहा है आज आज भी अशिक्षित किसानों का बड़ा तबका इस योजना से वंचित है अब तो चुनावी साल है तो इस आधी-अधूरी योजना का भी खूब गुणगान होगा और सोयल हेल्थ कार्ड योजना को आंकड़ों में सफलता प्राप्ती, सरकार द्वारा बताया जाएगा और आश्वासन भी दिया जाएगा कि देश का किसान इस योजना का लाभ उठाकर बहुत खुश हाल है लेकिन सरकार और मंत्री जमीनी हकीकत से कोसों दूर है।


 
   किसान बचाओ
   जवान बचाओ
  भारत का स्वाभिमान बचाओ ।

                               लेखक - कुलजीत सिंह धालीवाल
                               वट्स ऐप - +916350573663

Sunday, 1 July 2018

अन्नदाता के इस हालात पर किसान खुद जिम्मेवार या सरकार :




किसान ..... जिसे हम अन्न दाता कहते है । आज इस हालात में है कि जीवित होते हुऐ भी हर पल मर रहा है । इसका सबसे बडा कारण है । ' कर्ज '
हम॓ सबस॓  पहले यह जानना चाहिऐ कि किसान कर्ज के नीचे दिन प्रतिदिन क्यूं दबता जा रहा है । एक दिन ऐसा आता है किसान अपने खेत में कीटनाशक पीकर जांन दे देता है । और अपने परिवार को अनाथ करके चला जाता है । सोचने पर मजबूर करने वाली बात यह है कि देश में सबसे ज्यादा आत्महत्या किसान ही क्यूं करता है । इसके मूल तीन कारण है :-
1. फसलो का न्यूनतम सर्मथन मूल्य ना मिलना,
किसान अपने खेत में बोई हुई फसल का अपने बच्चो की तरह रख रखाव करता है । और जब किसान उस फसल को बेचने के लिए बाजार जाता है तो उसका सही भाव नही मिलता । क्योंकि फसल को बुवाई से पकाव के बाद बाजार तक ले जाने में बहुत खर्च होता है। जिससे किसान को बचत ना मात्र होती है। इसलिए किसानो ने न्यूनतम सर्मथन मूल्य के मुद्धे को लेकर पुरे भारत में 1 जून 2018 से गावं बदं आन्दोलन चलाया था और इससे पहले भी क‌ई बार आन्दोलन हुऐ है। जोकि किसान नेताओ की घटिया राजनिती की वजह से विफल हो गये । किसानो के इस विषय के बारे में सरकार को सवेदनशील होकर कार्य करना चाहिए।
2. - किसानो को कर्ज देने वाले बैंको की गलत निति
बैंक का किसान को कर्ज देने का उदेशय यह था कि किसान को अपनी फसल तैयार करने यानि डीजल, खाद, बीज, व कटाई तक खर्च किसी शाहूकार से मगहीं ब्याज दर पर ना लेना पडे । लेकिन हो इसका उल्टा रहा है । बैंक अपना बिजीनस बढाने व अपने विरोधियो को पछाडने की होड में किसान को जरुरत से ज्यादा कर्ज दे देते है जोकि किसान बहुत बडा घर या अपने बच्चो की शादियो पर अपनी वाह-वाहि पाने के लिए खर्च कर देता है और कर्ज की रकम बडी होने से महगीं ब्याज दरें लगती है। यह जानकर आशचर्य होता है कि किसान के पास जितने बीघा जमीन उतने ही लाख रूपये बैंक कर्ज देता है यानि 8 बीघा जमीन पर 8 लाख जिससे किसान की 6 माह की कमाई से घर खर्च निकाल कर बैंक द्वारा दिए कर्ज का ब्याज भरना भी मुशकिल हो जाता है। बैंक को कर्ज लोटाना तो बहुत दूर की बात है।
3.- खेती में काम आने वाले साधन (टै्क्टर , कम्बाईन, व अन्य औजार) को बेचने वाली कम्पनी व प्राईवेट फायन्सर की धोखाधडी
टै्क्टर की आड में किसान के साथ होने वाली सबसे बडी लूट है। 5 -10 बीघा जमीन वाले को 6 लाख का टै्क्टर लेना जायज नही लगता । ना ही वह किसान नया टै्क्टर लेने का इच्छुक होता है। टै्क्टर कम्पनी अपना बिजीनस बढाने के लिए छोटे किसान को निशाना बनाती है। और उससे कम मारजिन लेकर फायन्स करवा देते है जिसका कम से कम ब्याज 16% होता है। कम्पनी वाले किसान से खाली चैक एवं स्टाम्प ले लेते है, 2-3 किशते तो मुशिकल से भर देता है परन्तु जब किसान की किशत नही भर पाता तो फायन्सर उसका टै्क्टर उठा ले जाता है। फिर किसान मानसिक रुप से परेशान रहने लगता है। और जब वह अन्दर से टूट जाता है, फिर वह किसान आत्महत्या कर लेता है। ये होता भी रहेगा जब तक भारत सरकार किसानो के लिए अच्छी नितिया नही लेकर आती,।
                  किसान बचाओ,
                  जवान बचाओ,
        भारत का स्वाभिमान बचाओ ।
  लेखक :- कुलजीत सिहं धालीवाल
  वट्स ऐप :- +916350573663

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ਫੁੱਫੜ

ਭੂਆ ਤੈਨੂੰ ਵਿਆਈ, ਤੇ ਤਾਹੀਂ ਤੂੰ ਬਣਿਆ ਫੁੱਫੜ, ਬਾਪੂ ਬੇਬੇ ਦੱਸਿਆ, ਪਿੱਛੋ ਤਾਹੀਂ ਭੂਆ,ਫੁੱਫੜ, ਬਲੀ ਚੜੇ ਅਸੀਂ ਕੁੱਕੜ, ਤੂੰ ਫੁੱਫੜ ਦਾ ਫੁੱਫੜ.. ਗੱਲ ਕੱਟ ਜਾਵੇਂ ਮੇਰਾ...