रोज की तरह मैं शाम को अपना लेखन कार्य कर रहा था और साथ ही जिले में बढ़ते कोरोना मामलों को लेकर चिंतित था। मेरी पंचायत में दो तीन कोरोना के मरीज़ होने की खबर भी मुझे मिली थी, खबर सही है या गलत इसकी पुष्टि जरूरी थी क्यूंकि कोरोना महामारी के जैसे ही एक और बीमारी है, जिसका नाम डर है जो झूठी अफ़वाहों के कारण दिल के कमजोर लोगों के लिए बहुत खतरनाक है लेकिन हां, बचा दोनों बीमारियों से जा सकता है केवल सतर्क होकर, इसलिए इसकी पड़ताल जरूरी थी, जब तक मेरे लेखन कार्य पूरा हुआ देर काफी हो चुकी थी, 1 अप्रैल की रात लगभग 8 बजे का वक्त था, मैंने गांव से बाहर नेटवर्क में जाकर अपने सूत्रों से जिले की प्रत्येक ग्राम पंचायत में स्थापित कोरोना कंट्रोल रूम के संपर्क मंगवाए तो उसमें पता चला कि कंट्रोल रूम में अधिकारी 24 घण्टे सेवाएं दे रहे, श्रीकरणपुर तहसील के संपर्क पहुंचने में काफी समय लगा जिसके कारण 9 बजे का समय हो गया मैंने पहले सोचा था कि सुबह फोन पर बात करेंगे, फिर सोचा कंट्रोल रूम में 24 घण्टे की सेवा है फोन लगाकर देखते हैं अगर बात हुई तो जानकारी ले लेंगे नहीं तो फिर सुबह, बात मैंने अपनी पंचायत में करनी थीं, मैंने नम्बर लगाया जब तक तीसरी घंटी बजती उससे पहले हैलो कि आवाज आयी, तो मैंने कहा श्रीमान आप राजेश जी, उन्होंने कहा हां जी बोलिए, मैंने कहा मैं सुंदरपुरीया पागल बात कर रहा हूं, उन्होंने कहा जी, मैंने पूछा अपनी पंचायत में कोरोना के मरीज़ है या नहीं? उन्होंने कहा नहीं! मैंने उनको कहा कि गांव में से मेरे पास खबर आयी थीं कि अपनी पंचायत में दो तीन मरीज़ है ? उन्होंने कहा नहीं जी मेरे पास रजिस्टर में कोई नाम नहीं! उन्होंने बहुत ही शालीनता से बात की, मैंने उनको धन्यवाद किया कि आप मुश्किल दौर में अपनी सेवाएं दे रहे हो, मैंने फोन काट दिया। और आर्टिकल लिखना शुरू कर दिया थोड़ी देर बाद फिर एक फोन आया तो उन्होंने कहा कहां से बोल रहे हो? मैंने कहा जी आप? मैं 10 ओ तेजेवाला से कंट्रोल रूम प्रभारी आपका फोन आया था, राजेश जी से बात हुई थी, मैंने पलटकर कहा.. जी! मैंने कहा जी मैंने मोहलां कंट्रोल रूम में फोन किया था तो उन्होंने कहा आपका नम्बर गलत लग गया, मैंने उनको जी मेरी नज़र से सही नंबर का गर्भपात हो गया (क्यूंकि मैंने चलते चलते नम्बर देखा था) मैंने उनसे क्षमा मांगी और मुझे सही किया इस बात के लिए उनको धन्यवाद किया और उनके उज्वल भविष्य की कामना की। सच बताऊं मेरे अनुभव में ऐसा पहली बार हो रहा , की आप किसी अधिकारी को फोन करो और वो इतनी जल्दी फोन उठा ले और दूसरा की इतनी शालीनता से बात करे वो भी रात के समय में, इसका कारण तो जरूर है सोचकर हैरान था। लेकिन मेरी चिंता का समाधान नहीं हुआ था, तो मैंने मोहलां स्थित कंट्रोल रूम में फोन किया, दो घंटी बजी और फोन उठा, मैंने अपना नाम बताया और पूछा श्रीमान आप मोहलां से? उन्होंने कहा जी! मैंने उनसे पूछा कि अपनी पंचायत में कितने मरीज़ हैं? तो उन्होंने कहा जी तीन हैं! वो अपने घरों में आइसोलेट हैं, मैंने फिर पूछा जी उनमें सिर्फ़ लक्षण हैं या रिपोर्ट पॉजिटिव है? उन्होंने कहा जी इस बारे में मेरे पास कोई पुख्ता सबूत नहीं हैं हमारे पास जो नाम आते हैं हम उनका ख्याल रखते हैं! मैंने उन्हें बताया कि यह जानने के लिए फोन किया कि ये अफवाह या सच ? वो मुझसे इसी विषय पर विचार करते रहे तो मैंने उनसे बातों बातों में पूछा कि श्रीमान आप कहां रहते हो? उन्होंने कहा श्री गंगानगर! मैंने कहा आप रात को यहीं रहोगे? उनका जवाब था नहीं? मेरी पारी अब खत्म होने वाली है। अब घर जाऊंगा,, मैंने कहा रात को जाना मुश्किल होगा? उन्होंने कहा नहीं? पूरा देश मुश्किल में हैं हमें अपना कर्तव्य निभाना चाहिए। मैंने उनका नाम भी नहीं पूछा था उनकी बातें मुझे विचलित कर रही थी उनके बोलने का लहजा, मिठास, मैंने उनका नाम संपर्क फरिस्त में देखा, नाम था जसवाल सिंह मैं पहले कभी भी इनसे नहीं मिला था, ना ही कभी इनका नाम सुना था, समय 10 बजे से काफी ऊपर हो गया था, मैंने पूरी जानकारी ली और उनका धन्यवाद किया, इन सभी तीनों अधिकारियों ने मेरी समझ को बौना कर दिया, मैंने जिस विषय पर लेख लिखना था वो विषय अब पीछे रह चुका था मेरे लिए इन सभी अधिकारियों के बर्ताव को समझना था। और था भी कठिन, क्यूंकि मैं लगभग सभी विभागों के अधिकारियों से बात करता रहता हूं लेकिन यह एक अलग अनुभव था, सोचा इसका कोई तो कारण है, एक कारण यह महामारी अधिनियम में नौकरी जाने का खतरा, मेरे तर्क ने यह बात झूठी साबित कर दी, क्यूंकि अगर यह बात सत्य होती तो वे सिर्फ़ इतनी बात करते कि यह यह सूचना है मुझे बताते और फोन काट देते मुझसे समाजिक विचार नहीं करते। दूसरा कारण मैंने ये पाया की वो रात अपने घर से दूर दूसरे गांव में इतने बड़े स्कूल में अकेले होंगे इसलिए मुझसे बातें करके अपना वक्त गुजार रहे होंगे, मेरे तर्क ने यह बात भी झूठी करदी, अगर वो अपने आप को सुनसान स्कूल में अकेला महसूस कर रहे होंगे तो वो इतनी देर बात मुझसे नहीं अपने परिवार से करते।
तीसरा कारण जो बड़ा कारण यह सभी अधिकारी अध्यापक थे। अध्यापक पढ़े लिखे हैं तो दूसरे अधिकारी कोनसा अनपढ़ होते हैं? यह बात सत्य है। लेकिन एक अध्यापक में किसी दूसरे विभाग के अधिकारी से सहनशीलता ज्यादा होती है इसलिए वो हर प्रकार के बच्चे को शिक्षा दे देते, अध्यापक दूसरे अधिकारियों से ज्यादा बुद्धिमान होते है, ( क्योंकि ज्यादातर किताबें अध्यापकों ने लिखी हैं अलग अलग विषय पर, और गुरु ग्रन्थ साहिब जी का टीका भी अध्यापक ने ही लिखा है प्रोफ़ेसर ज्ञानी साहिब सिंह जी ने गुरबाणी दर्पण लिखा है) इसलिए उन्होंने शालीनता से बात करते हुए मुझे जानकारी दी एवं महामारी में समाज को सतर्क रहने पर इतनी देर रात तक बात की। मैं इन योद्धाओं जैसे सभी योद्धाओं को दिल से सलाम करता हूं। इनके बारे में आपको एक और बात बताऊं कि जैसे फौजी को जंग से लडने से पहले हर प्रकार का प्रशिक्षण दिया जाता है, डॉक्टर, नर्स भी इस जंग में अपने प्रशिक्षण के अनुरूप कार्य कर रहें हैं परन्तु अध्यापक और पंचायत कर्मचारी अपने प्रशिक्षण से हटकर इस महामारी के जंग में योद्धा बनकर अपनी भूमिका बखूबी निभा रहें है। देश व समाज इनकी सेवा को हमेशा याद रखेगा। आज सभी कोरोना योद्धाओं व उनके परिवार के उज्वल भविष्य की कामना करता हूं। पाठकों के लिए एक बात कहता हूं कि मैं बुराई की आलोचनाएं अक्सर करता हूं, जरूरी यह भी है अच्छाई की सराहना भी करनी चाहिए।
इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है 👇
1. अच्छा व्यक्तित्व आपकी छवि को बड़ा करता है और आपको समाज से इज्जत दिलवाता है।
2. आपके शब्द आपका सबसे बड़ा हथियार होते हैं बस इस्तेमाल करने की कला सीख लो।
3. ज्ञान और हिम्मत का जोड़ हो तो आपको किसी भी कार्य को करने में कभी कठिनाई नहीं होती।
धन्यवाद
लेखक पागल सुंदरपुरीया
9649617982